गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़ हात मिलता मातम-ए-मजनूँ से है सहरा हनूज़ जों सदफ़ है गरचे आँखों में सजन बस्ता हनूज़ खोलता नीं उक़्दा-ए-दिल वो दुर-ए-यकता हनूज़ जब पता पूछूँ मैं घर का यार हरजाई सेती दो दिला करने कूँ कहता है मुझे जा जा हनूज़ तौक़-ओ-पेच-ए-ज़ुल्फ़-ए-लैला है बघोले से अयाँ ख़ाक-ए-मजनूँ से नियाज़-ओ-नाज़ है रुस्वा हनूज़ गरचे मिस्ल-ए-शबनम-ए-गुल दिल दिया हूँ पी के हात वो रंगीला खोलता नीं उक़्दा-ए-सीमा हनूज़ जान-ए-शीरीं से शरर तन में जलाता है मुदाम ताइन-ए-कम-ज़र्फ़ी-ए-फ़रहाद है ख़ारा हनूज़ दाग़-ए-दिल 'उज़लत' को जूँ लाला है बुलबुल बिन बहार उन गुलों से जी किसी रंगों नहीं लगता हनूज़