गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह और ये अपना मकाँ ख़ूब है अपनी जगह ऐ दिल-ए-आशुफ़्ता-सर रात अँधेरी है पर रक़्स तिरा शम्अ-साँ ख़ूब है अपनी जगह काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा तेरी हिकायत ही क्या फिर भी तमाशा-ए-जाँ ख़ूब है अपनी जगह हिज्र-नज़ादों का है एक अलग ही जहाँ उस से न मिलना यहाँ ख़ूब है अपनी जगह सैर-ए-बयाबाँ-ओ-दर उक़्दा-कुशा नीज़ रंज-ए-मसाफ़त मियाँ ख़ूब है अपनी जगह चेहरा-ए-बिल्क़ीस पर आँख ठहरती नहीं सुब्ह-ए-यमन का समाँ ख़ूब है अपनी जगह