गरेबाँ फाड़ते हैं देख ख़ूबान-ए-चमन क्यूँ कर न कीजे चाक नासेह इस हवा में पैरहन क्यूँ कर करे मेहनत कोई लज़्ज़त उठावे यार से कोई कहो अपने तईं ज़ाएअ' न करता कोहकन क्यूँ कर न दो ऐ गुल-रुख़ाँ तकलीफ़ मुझ को शेर-ख़्वानी की कहो बिन फ़स्ल-ए-गुल कोई करे दीवाना-पन क्यूँ कर हुआ जाता हूँ गज़ साया पे पड़ती है नज़र मेरी तेरी सज देख कर अहबाब जीते हैं सजन क्यूँ कर तअ'ज्जुब सख़्त रहता है 'यक़ीं' इस बात का मुझ को कि इतना बोलते हैं तल्ख़ ये शीरीं-दहन क्यूँ कर