गरेबाँ फाड़ डाले रश्क से हर गुल-बदन अपना निकालूँ ख़ाक से जूँ लाला गर ख़ूनीं-कफ़न अपना लगेगा हाथ पत्थर इस तरह की सई-ए-नाहक़ से पराए दिलबरों पर सर न चीर ऐ कोहकन अपना दिया बर-बाद राज़-ए-इश्क़ इस चाक-ए-गरेबाँ से न रक्खा बू-ए-गुल की तरह मैं ने हाथ मन अपना हमारा जी निकल जाता है जब ये नौजवाँ हम को दिखाते हैं भवें त्योरी चढ़ा कर बाँकपन अपना 'यक़ीं' उस के दुर-ए-दंदाँ की बातें जो किया चाहे सदफ़ की तरह धोए आब-ए-गौहर से दहन अपना