ग़रज़ पड़ने पे उस से माँगता है ख़ुदा होता है या'नी मानता है कई दिन से शरारत ही नहीं की मिरे अंदर का बच्चा लापता है बुरे माहौल से गुज़रा है ये दिल मोहब्बत लफ़्ज़ से ही काँपता है ये कच्ची उम्र के आशिक़ को देखो ज़रा रूठे कलाई काटता है अभी मंज़िल दिखाई भी नहीं दी अभी से ही तू इतना हाँफता है गुनाहों की सज़ा सब दूसरों को गरेबाँ कौन अपना झाँकता है अजब कारीगरी है 'मीत' उस की बदन को रूह पे वो टांकता है