कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए और हर बात हो ये बात न होने पाए जो भी सूरत है इनायत है करम है उन का राएगाँ उन की ये सौग़ात न होने पाए उन की तस्वीर से हर लम्हा रहे राज़-ओ-नियाज़ मुंतशिर शान-ए-ख़यालात न होने पाए सख़्त दुश्वार है पाबंदी-ए-आईन-ए-वफ़ा बात तो जब है तुझे मात न होने पाए जान दे दीजिए आदाब-ए-मोहब्बत के लिए देखिए ख़ामी-ए-जज़्बात न होने पाए बज़्म में उन का कोई ज़िक्र जो आ जाता है हुक्म होता है मिरी बात न होने पाए हुस्न-ए-किरदार से हस्ती को सजा लो 'वसफ़ी' ज़िंदगी नज़्र-ए-ख़ुराफ़ात न होने पाए