गर्म-ओ-सर्द एक ही रुत जैसे हैं By Ghazal << मुक़द्दर में लिखा है ग़म ... ग़म तो ये भी है कि तक़दीर... >> गर्म-ओ-सर्द एक ही रुत जैसे हैं अब हमारे लिए मौसम कैसा आप को देख के ये जाना है ख़्वाब लगता है मुजस्सम कैसा आसमानों पे कमंदें डालो ठान ली जाए तो जोखम कैसा कोशिशें छोड़ दे ऐ चारागर ज़ख़्म नासूर है मरहम कैसा Share on: