गश्त में है मिरी नज़र कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर फिरने लगी इधर-उधर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर सूरत-ए-ख़ाक की बसर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर फिरता रहा हूँ उम्र भर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कौन है तू कहाँ है तू मिलता नहीं मुझे पता धूम है तेरी इस क़दर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर चैन नहीं किसी जगह फिरता हूँ क़ैस की तरह दुनिया में सब को छोड़ कर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर नालाँ इधर है दिल मिरा जब से कोई जुदा हुआ ढूँढती है उधर नज़र कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर हाल कुछ और हो गया पड़ गए लाले जान के ठोकरें खाईं इस क़दर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर दिल था किसी की याद थी अश्क थे और आह थी रोता रहा हूँ उम्र भर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर दिल था मिरा मकान-ए-दोस्त दिल ही में था मक़ाम-ए-दोस्त फिर भी तलाश की मगर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर दैर-ओ-हरम में कब मिला सामने वो कभी न था ढूँडें उसे किधर किधर किधर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर चैन उसे कहीं नहीं फिरता है 'हामिद'-ए-हज़ीं थामे हुए दिल-ओ-जिगर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर