गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो ये बंद बंद जुदा हैं क़बा के देख न लो किसी के इश्क़ में तकलीफ़ कुछ नहीं होती किसी से चार-घड़ी दिल लगा के देख न लो दिल-ओ-जिगर का तड़पना हमारी बेताबी जो देखना है तो सूरत दिखा के देख न लो हमारी आह का क्या देखना जो देखोगे वही तो बात है झोंके हवा के देख न लो अगर मोहब्बत-ए-'मुज़्तर' के तुम नहीं क़ाइल तो एक काम करो आज़मा के देख न लो