ग़ैर दुश्मन हुए यारान-ए-वतन भूल गए आप जब से मुझे ऐ मुश्फ़िक़-ए-मन भूल गए मेरी फ़रियाद से बात अहल-ए-सुख़न भूल गए ज़मज़मे नग़्मा-सरायान-ए-चमन भूल गए इस क़दर गर्दिश-ए-तक़दीर से घबरा गए हम सदमा-ए-कजरवी-ए-चर्ख़-ए-कुहन भूल गए क्या कहें रंज-ए-ग़रीब-उल-वतनी की लज़्ज़त शाम-ए-ग़म देखते ही सुब्ह-ए-वतन भूल गए इस क़दर दूर हुए आलम-ए-अर्वाह से हम नाम क्या सूरत-ए-यारान-ए-वतन भूल गए शब-ए-फ़ुर्क़त जो ख़याल आया तिरी आँखों का सारे आफ़ात ब-यक-चश्म-ज़दन भूल गए ख़ाक में सौंपते ही बात न पूछी अफ़सोस एक ही रोज़ में यारान-ए-वतन भूल गए रुख़-ओ-क़द्द-ओ-बदन-ओ-ग़ुंचा-लब ऐसा भाया कि हम ऐ 'रश्क' गुल-ओ-सर्व-ओ-समन भूल गए