होगा हम-चेहरा रू-ए-दिलबर का मुँह कोई देखे माह-ए-अनवर का चश्म-ए-तर का जो इम्तिहान करूँ नाम कोई न ले समुंदर का संग-ए-ग़म से न हो सका सरताब कोहकन बन गया था पत्थर का ख़ुद-नुमाई से कब मिली फ़ुर्सत आइना कब हुज़ूर से सरका गर्दिश-ए-चश्म इधर भी ऐ साक़ी न करूँगा सवाल साग़र का किश्वर-ए-फ़क़्र बे-तकल्लुफ़ है एक है हुक्म ख़ाक-ए-वाफ़र का मुझ को सलमान की क़सम ऐ 'रश्क' बंदा-ए-कम-तरीं हूँ बू-ज़र का