ग़म के लम्हों में किसी तरह क़रार आ जाए आज पी लेते हैं इतनी कि ख़ुमार आ जाए काश वो मेरी तरफ़ ऐसी नज़र से देखें मेरे वीरान गुलिस्ताँ में बहार आ जाए हम इसी आस पे जीते रहे इक उम्र तलक वो करम-बार हों शायद उन्हें प्यार आ जाए मुझ को है ख़ौफ़ कि ऐसा न हो ऐ दोस्त कहीं मेरी जानिब से तिरे दिल में ग़ुबार आ जाए काश बेदार हों तूफ़ान में जज़्बात तिरे काश फिर तेरी मोहब्बत में निखार आ जाए