ग़म को पर्दे में मसर्रत के छुपा देता हूँ मैं आँसू आँखों में जब आए मुस्कुरा देता हूँ मैं ज़िंदगी की राहतें क्या ज़िंदगी तक भी निसार याद जब आते हो तुम सब कुछ भुला देता हूँ मैं हाँ इसी चुप में जो बे-मा'नी है औरों के लिए काम जिस से है उसे सब कुछ सुना देता हूँ मैं रोना आता था जब अपने हाल पर वो दिन गए अब तो बर्बादी पे अपनी मुस्कुरा देता हूँ मैं आ गई अश्कों में लाली हसरतों के ख़ून की दिल की जो हालत है आँखों से दिखा देता हूँ मैं हुस्न के दामन पे आँच आने नहीं देता कभी अपने दिल में शो'ला-ए-ग़म को दबा देता हूँ मैं काम क्या ज़िंदा-दिली का मर चुका 'नव्वाब' दिल मौत की नींद आरज़ूओं को सुला देता हूँ मैं