घर छोड़ के भी घर ही के आज़ार में रहना By Ghazal << आप रुस्वा हुए ज़माने में वो कहाँ मिले वो कहीं मिले >> घर छोड़ के भी घर ही के आज़ार में रहना खोए हुए फ़िक्र-ए-दर-ओ-दीवार में रहना कुछ और बढ़ा देता है मा'नी का तअस्सुर चुप रह के भी पैराया-ए-इज़हार में रहना जो मस्लहत-ए-वक़्त को ख़ातिर में न लाए वो हुस्न-ए-अना चाहिए फ़न-कार में रहना Share on: