किस को वाशुद हुई भर उम्र ही दिल-गीर रहे चमन-ए-दहर में जूँ ग़ुंचा-ए-तस्वीर रहे लज़्ज़तें दिल ने उठाई हैं तिरी मिज़्गाँ से जब तलक दम में है दम सीने में ये तीर रहे आँख लग जाए शब-ए-ग़म में कोई दम दिल की टुक भी ख़ामोश अगर नाला-ए-शबगीर रहे हाल सौ तरह से लिख्खूँ उसे ऐ दीदा-ए-तर ख़ुश्क कुछ भी जो मिरा काग़ज़-ए-तहरीर रहे ता-दम-ए-नज़अ बला से न छुटे है ज़ालिम उम्र-भर ज़ुल्फ़ से उस शोख़ की ज़ंजीर रहे देख सूरत को तिरी हर बुत-ए-चीं ने ये कहा सामने आँखों के दिन-रात ये तस्वीर रहे हैं कहाँ तेरी वो चालाकियाँ ऐ दस्त-ए-जुनूँ जेब 'अफ़सोस' का सद-हैफ़ गुलू-गीर रहे