हम बार बार शिकवा-ए-तक़दीर क्या करें होगी न कारगर कोई तदबीर क्या करें कातिब को ख़ुद हमारे मुक़द्दर पे है मलाल क्या कुछ पड़ा है सहना ये तश्हीर क्या करें देखा है जब से झाँक के ख़ुद अपने आप को इक मुख़्तलिफ़ सी मिल गई तस्वीर क्या करें सपने सुहाने सब यहाँ बिखरे हैं एक एक अब ख़्वाब कुछ हो ख़्वाब की ता'बीर क्या करें मिल जाए काश ख़िज़्र ही सहरा नसीब को भटके हुए हैं हम सभी रहगीर क्या करें