ग़र्क़ कर दें न कहीं यास के तूफ़ाँ मुझ को ये किधर ले के चले हैं मिरे अरमाँ मुझ को ख़ुद मशीअ'त ने किया इश्क़-बदामाँ मुझ को क्यों न तड़पाए फिर अब गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को मेरी नाकामी-ए-तक़दीर का अंजाम न पूछ मौजा-ए-अश्क हुआ बादा-ए-इरफ़ाँ मुझ को ऐश-ए-दुनिया के मज़े थे दिल-ए-मरहूम के साथ अब तो दुनिया है फ़क़त गोशा-ए-वीराँ मुझ को हाए क्या क्या न किया एक मज़ाक़-ए-ग़म ने चाक-दिल चाक-जिगर चाक-गरेबाँ मुझ को कब है महदूद बहारों में नज़र की वुसअ'त या'नी ये फूल भी हैं ख़ार-ए-मुग़ीलाँ मुझ को नज़र आने लगी हर ज़र्रा में अपनी ही शबीह कर दिया कसरत-ए-नज़्ज़ारा ने हैराँ मुझ को दिल की ता'मीर का ज़ामिन है कमाल-ए-तख़रीब दर्द हो जाएगा ख़ुद दर्द का दरमाँ मुझ को बहर-ए-उल्फ़त में नहीं ख़्वाहिश-ए-साहिल ऐ 'मौज' मैं न तूफ़ान को छोड़ूँगा न तूफ़ाँ मुझ को