मैं ख़ुद ही इश्क़ में मजबूर हूँ वफ़ा के लिए ख़ुदा का वास्ता मुझ को न दे ख़ुदा के लिए न आम कर तू मज़ाक़-ए-जफ़ा ख़ुदा के लिए ये दिल बहुत है तिरे जौर-ए-ना-रवा के लिए थी ना-गुज़ीर फ़ना आलम-ए-बक़ा के लिए इक इंतिहा भी ज़रूरी थी इब्तिदा के लिए मुझे दुआओं से अपनी नहीं उमीद-ए-असर मगर हनूज़ मैं आमादा हूँ दुआ के लिए उन्हीं को माँग लूँ उन से जो वो इजाज़त दें मैं इंतिज़ार में हूँ इज़्न-ए-इल्तिजा के लिए मजाज़ और हक़ीक़त हैं सद्द-ए-राह-ए-जमाल ये सब फ़रेब हैं चश्म-ए-हक़-आश्ना के लिए शमीम-ए-ज़ुल्फ़ तिरी उस को मिल गई शायद सुकून आज मयस्सर नहीं सबा के लिए चमन है वो हैं बहारें हैं और फ़ुर्सत है अब इंतिज़ार है घनघोर इक घटा के लिए वफ़ा की कोशिशें फ़िक्र-ए-विसाल रंज-ए-फ़िराक़ बड़े अज़ाब हैं इक जान-ए-मुब्तला के लिए जहान-ए-इश्क़ मुकम्मल नहीं हुआ अब तक मकाँ उजड़ गए लाखों इसी बिना के लिए शिकस्त-ए-अहद ग़म-ए-हिज्र इंतिज़ार-ए-सहर दवा कहाँ है मिरे दर्द-ए-ला-दवा के लिए ये दिल है पहले भी दिल ही था लेकिन अब ऐ दोस्त बना दिया इसे पत्थर तिरी जफ़ा के लिए ये ज़ौक़-ए-सैर मिरा ये तबाही-ए-तूफ़ाँ मैं इक वबाल हूँ ऐ 'मौज' नाख़ुदा के लिए