ग़ौरो-ओ-फ़िक्र कम करना ज़िंदगी के बारे में इक यही इशारा था मेरे इस्तिख़ारे में आप की तवज्जोह का एहतिराम है लेकिन कुछ कशिश भी होती है टूटते सितारे में किस को इतनी फ़ुर्सत है कोई दूसरा ढूँडे उस का नाम लिख दूँ क्या उस के इस्ति'आरे में सर उठाती लहरों में सरकशी न हो जब तक कैफ़ियत नहीं आती डूबते किनारे में अब भी दिल धड़कता है मौत के तसव्वुर से अब भी जान बाक़ी है ज़िंदगी के मारे में मैं तुम्हारा जो भी हूँ और तुम मिरे जो भी खो न जाए जो भी है इस मिरे तुम्हारे में छोड़ दे 'अमित' अब ये छाओं-वाओं में रहना तू भी कुछ इज़ाफ़ा कर धूप के ख़सारे में