ग़ज़ब में शीशागर है और मैं हूँ मिरा शीशे का घर है और मैं हूँ निगाह-ए-तेज़-तर है और मैं हूँ मोहब्बत का असर है और मैं हूँ सुकूँ मुझ को मयस्सर किस तरह हो कि आबादी में घर है और मैं हूँ कब आए मंज़िल-ए-मक़्सूद देखो तख़य्युल का सफ़र है और मैं हूँ बताऊँ क्या मशाग़िल ज़िंदगी के किसी का संग-ए-दर है और मैं हूँ न कुछ ज़ाद-ए-सफ़र है और न तोशा सफ़र बे-बाल-ओ-पर है और मैं हूँ बहुत है कारहा-ए-ज़ीस्त लेकिन हयात-ए-मुख़्तसर है और मैं हूँ तख़य्युल में तलातुम सा बपा है ये दरिया ज़ोर पर है और मैं हूँ हुज़ूरी की हो क्या तदबीर 'ख़ावर' वही दरबान-ए-दर है और मैं हूँ