ग़ज़ल हो तुम या ग़ज़ाल जानाँ हर इक अदा बे-मिसाल जानाँ रिदा से ज़ाहिर है बे-रिदाई ज़रा सा आँचल सँभाल जानाँ ये रूप तेरा ये हुस्न तेरा जमाल जानाँ कमाल जानाँ मैं रोज़ मर मर के जी रहा हूँ फ़िराक़ में है वो हाल जानाँ मिरी मोहब्बत अमर रहेगी कभी न होगा ज़वाल जानाँ तुम्हारी चश्म-ए-करम से होगी मिरी तबीअ'त बहाल जानाँ मैं फिर से तारीक हो रहा हूँ मुझे तू फिर से उजाल जानाँ ग़ज़ल में अल्फ़ाज़ कुछ भी कह लूँ मगर है तू ही ख़याल जानाँ ओ मेरी धड़कन तुम्हारे बिन है हयात-ए-'काशिफ़' मुहाल जानाँ