घुटन बढ़ती है तो जीने की ख़्वाहिश और होती है हवाएँ बंद हो जाएँ तो बारिश और होती है कहाँ वो क़हक़हे उस के कहाँ अश्कों की तुग़्यानी तमाशा और होता है नुमाइश और होती है बहुत देखा है हम ने और हमारा तज्रबा भी है सँभल कर रास्ता चलने से लग़्ज़िश और होती है मैं अपना दिल झुकाता हूँ तुम अपना सर झुकाए हो इबादत और ही शय है परस्तिश और होती है मैं साक़ी के करम का इस लिए मम्नून-ओ-शाकिर हूँ कि इज़हार-ए-तशक्कुर से नवाज़िश और होती है 'जमील' अब जिस क़दर भी हो सके मोहतात ही रहिए नज़र आज़ाद हो जाए तो बंदिश और होती है