किसी बे-कस के कासे में जो तू मक़्दूर हो जाए गदा हो कर वो रश्क-ए-क़ैसर-ओ-मग़्फ़ूर हो जाए मोहब्बत चाहिए दिल में मोहब्बत है तो सब कुछ है ये है तो दिल की तारीकी सरापा नूर हो जाए मोहब्बत खेल है उल्टा इसे चाहो ये खिंचती है कोई आए क़रीब इस के तो ये ख़ुद दूर हो जाए ज़माने के हवादिस से दिल-ए-आशिक़ तो पत्थर है मोहब्बत में जो ये टूटे तो चकना-चूर हो जाए जो मैं मसरूर होता हूँ तुझे मग़्मूम पाता हूँ जो मैं मग़्मूम हो जाऊँ तो तू मसरूर हो जाए