गुदाज़-ए-आतिश-ए-ग़म सीं हुई हैं बावली अँखियाँ अँझू के भाँत पानी हो के माटी में रुली अँखियाँ करेंगी क़त्ल दिल कूँ आज तेग़-ए-अबरुवाँ-सेती निपट ख़ूनीं हैं ज़ालिम हम नीं तेरी अटकली अँखियाँ पय-ए-दफ़ा-ए-गज़ंद-ए-ज़ुल-फ़िक़ार अबरू तिरे मुख पर मिज़ा कूँ कर ज़बाँ करती हैं दम नाद-ए-अली अँखियाँ अगर देखें बहार-ए-हुस्न खिल गुल के नमन फूलें रहीं हैं मुँद जद्दाई ये ख़िज़ाँ सीं जूँ कली अँखियाँ नहीं दरकार कुछ ऐ ख़ुश-निगह सुरमे का दुम्बाला मिरा दिल क़त्ल करने कूँ यू बस हैं अटकली अँखियाँ गया है माह-रू जब सीं जुदा हो आब-ए-हैवाँ जूँ जसे माही जुदा जल सीं तपीं यूँ तिल्मिली अँखियाँ न होवे दर्द-ए-सर 'यकरू' कूँ पैदा गर्मी-ए-ग़म सूँ अगर देखें पिया के मुख का रंग-ए-संदली अँखियाँ