गुदाज़ रेशमी गुफ़्त-ओ-शुनीद हो मौला मताअ'-ए-ज़ेहन-ए-रसा भी जदीद हो मौला इक ऐसा बंदा मिरे घर में परवरिश पाए जो तेरी राह पे चल कर शहीद हो मौला जो मेरे पास है तावान है सख़ावत का ये इल्तिफ़ात-ओ-इनायत मज़ीद हो मौला हमारे ज़ेहन को इरफ़ान-ए-आगही दे दे जो नस्ल-ए-नौ के लिए भी मुफ़ीद हो मौला ये बद-नुमाई नुमाइश कभी न कर पाए जो एहतिजाज का जज़्बा शदीद हो मौला हमारे ख़ून की हर बूँद तेग़ बन जाए नज़र के सामने जब भी यज़ीद हो मौला क़ुबूल सारी इबादत हो रोज़ा-दारों की जो तेरी मर्ज़ी है वैसी ही ईद हो मौला