गुज़री हुई रौनक़ के निशाँ ले के चले हम लो कुश्ता-चराग़ों का धुआँ ले के चले हम है दोश पे कितने ही ज़मानों की विरासत हर-गाम पे इक बार-ए-गराँ ले के चले हम हो तेरा बुरा आरज़ू-ए-संग-ए-हवादिस सो कारगह-ए-शीशागराँ ले के चले हम इस अंजुमन नाज़ में है कौन ख़रीदार बे-कार मता-ए-दिल-ओ-जाँ ले के चले हम मय-ख़ाने में उम्मीद-ए-करम लाई थी 'मैकश' और बे-रूख़ी-ए-पीर-ए-मुग़ाँ ले के चले हम