मेरा दिल चाक हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह अब गुलिस्ताँ नज़र आता है बयाबाँ की तरह मेरे सीने में मुनव्वर हुए यादों के चराग़ बज़्म-ए-ख़ूबाँ की तरह शहर-ए-निगाराँ की तरह कोई मोनिस कोई हमदम कोई साथी न मिला मैं परेशाँ ही रहा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरह ख़त्म हो जाएगी हर रौशनी दुनिया की मगर तुम चमकते ही रहोगे मह-ए-ताबाँ की तरह मैं ने चाहा कि सँभल जाए तबीअत मेरी दिल टपकता ही रहा दीदा-ए-गिर्यां की तरह चश्म-ए-उल्फ़त से न देखा कभी दुनिया ने मुझे मैं खटकता ही रहा ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की तरह मेरे साक़ी तिरे अंदाज़-ए-करम के सदक़े अब तो 'मैकश' भी नज़र आता है इंसाँ की तरह