सताइश न कीजिए तबर्रा सही नहीं बिन्त-ए-अंगूर ठर्रा सही तअस्सुर नहीं उन के रुख़ पर न हो है क़ुरआँ तो क़ुरआँ मुअर्रा सही मगर कितने सूरज हैं दुश्मन मिरे मिरी हैसियत एक ज़र्रा सही कहाँ चैन तेरे जुनूँ-कार को ग़म-ए-दो-जहाँ से मुबर्रा सही बदन दर बदन इश्क़ रूह-ए-रवाँ ज़माँ दर ज़माँ एक ढर्रा सही रऊनत ग़रीबी का महसूल है सुखी को सख़ावत का ग़र्रा सही पिएँगे यूँही हँस के हम ज़हर-ए-ग़म हमारे लिए रोज़-मर्रा सही मिला कुछ तो क़ातिल से 'आज़िम' तुम्हें पस-ए-दाग़-ए-दिल एक छर्रा सही