गुल हुए चाक-गरेबाँ सर-ए-गुलज़ार ऐ दिल बन गया रंग-ए-चमन बाइस-ए-आज़ार ऐ दिल शम्अ'-रू हो गए फ़ानूस-ए-हरम के क़ैदी अब कहाँ रौशनी-ए-गर्मी-ए-बाज़ार ऐ दिल सिलसिला आतिश-ए-सोज़ाँ का है दरपेश जुनूँ अब न दीवार न है साया-ए-दीवार ऐ दिल शीशा-ए-ख़्वाब जो टूटा तो वो आसार गए चश्म-ए-बेदार भी है नर्गिस-ए-बीमार ऐ दिल हल्क़ा-ए-दीद में है पैकर-ए-मंज़र भी असीर हम हुए अपनी ही आँखों के गिरफ़्तार ऐ दिल जल्वा-ए-हुस्न-ए-तमन्ना है उन्हें अक्स-ए-जमाल जो सराबों में हैं सहरा के गिरफ़्तार ऐ दिल रास आई हमें शब-गर्दी-ओ-बे-राह-रवी ख़ूब आज़ाद हुए तेरे गिरफ़्तार ऐ दिल शाम के साए लपकते चले आते हैं सो अब जो भी कुछ है वो है गिरती हुई दीवार ऐ दिल