गुल की ख़ुश्बू की तरह आँख के आँसू की तरह दिल परेशान है गर्द-ए-रम-ए-आहू की तरह जो गुल-अंदाम मकीनों को तरसते हैं हनूज़ शहर में कितने खंडर हैं मिरे पहलू की तरह ज़ुल्फ़-ए-गीती को भी आईना-ओ-शाना मिल जाए तुम सँवर जाओ जो आराइश-ए-गेसू की तरह रक़्स करता है ज़र-ओ-सीम की झंकार पे फ़न मरमरीं फ़र्श पे बजते हुए घुंघरू की तरह आज भी शाबद-ए-अहल-ए-हवस है इंसाफ़ दस्त-ए-बक़्क़ाल में पुरकार तराज़ू की तरह महशरिस्तान-ए-सुकूँ है मिरी हस्ती 'माहिर' किसी शहबाज़ के टूटे हुए बाज़ू की तरह