पुकारने का क़रीना मैं सोचता ही रहा हसीं कहूँ कि हसीना मैं सोचता ही रहा नमी सी थी दम-ए-रुख़्सत कुछ उन के आँचल पर वो अश्क थे कि पसीना मैं सोचता ही रहा तिरे करम की कोई हद नहीं हिसाब नहीं चबा के नान-ए-शबीना मैं सोचता ही रहा उधर वो पहली को आए थे एक पल के लिए उधर तमाम महीना मैं सोचता ही रहा