गुल-ओ-समन नहीं गुलचीं तो ख़ार रहने दे चमन में कुछ तो निशान-ए-बहार रहने दे तुझे जुनूँ की क़सम ऐ दिल-ए-सुकूँ-दुश्मन तमाम उम्र मुझे बे-क़रार रहने दे कहीं न हसरत-ए-ख़्वाबीदा फिर से जाग उठे नवाज़िश-ए-निगह-ए-फ़ित्ना-कार रहने दे फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ग़नीमत है मिज़ाज-ए-दोस्त अगर उस्तुवार रहने दे ये हादसात-ए-मोहब्बत हैं आज भी दिलकश अगर सुकूँ से ग़म-ए-रोज़गार रहने दे नफ़स नफ़स है मोहब्बत में दाइमी 'जौहर' मगर जो ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र रहने दे