इतना तो इर्तिबात हो उस संग-ए-दर के साथ झुक जाए काएनात भी सज्दे में सर के साथ एहसान-ए-ग़ैर और रह-ए-मंज़िल-ए-हबीब है नंग-ए-जुस्तुजू जो चलूँ राहबर के साथ वो ज़र्रा-हा-ए-दिल भी बड़े ख़ुश-नसीब हैं वाबस्ता हो गए जो तिरी रहगुज़र के साथ मंज़िल की फ़िक्र क्या है कि ऐ रह-नवर्द-ए-शौक़ मंज़िल तो हर क़दम पे है अज़्म-ए-सफ़र के साथ देखा किए हैं ख़ूब नशेब-ओ-फ़राज़-ए-दहर खेला किए हैं फ़ित्ना-ए-शाम-ओ-सहर के साथ ग़ैरत का है मक़ाम गरेबाँ के वास्ते दामन ने जो सुलूक किया चश्म-ए-तर के साथ गुज़रे हैं हम पे इश्क़ में ऐसे भी हादसे इक रब्त-ए-ख़ास है जिन्हें तेरी नज़र के साथ 'जौहर' हुजूम-ए-शौक़ में इतना तो तुम न हो अपनी ख़बर भी चाहिए उन की ख़बर के साथ