गुलाब समझा हुआ था जिन को वो ख़ार निकले हमारे दुश्मन हमारे अपने ही यार निकले कभी कभी दर्द दिल में निकले तो यूँ लगे है कि जैसे मेरे बदन से कुछ आर-पार निकले वो लोग जो ख़ुद को ज़ब्त का रब बता रहे थे पड़ी जो मुश्किल तो एक झटके की मार निकले मैं हक़ पे हूँ जान कर भी कोई नहीं मिरे साथ मुख़ालिफ़त में मिरी मगर बे-शुमार निकले उसी के दिल पर असर नहीं हो सका वगर्ना हमारी आँखों से अश्क तो बार बार निकले हमारी क़िस्मत में डूबना लिख दिया गया था वगर्ना जो लोग साथ थे वो तो पार निकले मैं चाहता हूँ तू मुझ पे बिल्कुल न जाए बेटा मैं चाहता हूँ कि तू इबादत-गुज़ार निकले ज़बाँ नहीं साथ दे सकी मेरा 'मेहदी' वर्ना मिरी तो कोशिश यही थी दिल का ग़ुबार निकले