गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक सफ़र लम्बा था ख़ुशबू का मगर आ ही गई घर तक वफ़ा की सल्तनत इक़्लीम-ए-वादा सर-ज़मीन-ए-दिल नज़र की ज़द में है ख़्वाबों से ताबीरों के किश्वर तक कहीं भी सर-निगूँ होता नहीं इख़्लास का परचम जुदाई के जज़ीरे से मोहब्बत के समुंदर तक मोहब्बत ऐ मोहब्बत एक जज़्बे की मसाफ़त है मिरे आवारा सज्दे से तिरी चौखट के पत्थर तक उदासी मू-क़लम है नक़्श में रंग-ए-मलाल उभरा तमन्नाओं के पस-मंज़र से दिल के पेश-ए-मंज़र तक