गुल-पैरहन रहे कि दरीदा-क़बा रहे जिस हाल में रहे तिरा नक़्श-ए-बक़ा रहे हम तो तमाम उम्र तिरी ही अदा रहे ये क्या हुआ कि फिर भी हमीं बेवफ़ा रहे चाही जो तू ने बात वही बात हम ने की तेरी ज़बाँ बने तिरे दिल की सदा रहे तू साथ साथ था तो ख़ुदाई भी साथ थी अपनी रफ़ाक़तों के निशाँ जा-ब-जा रहे तुझ को भुला के भी न तुझे हम भला सके ना-आश्ना वो थे कि जहाँ आश्ना रहे सब देखते थे फिर भी कोई देखता न था सब के लिए रसा थे मगर ना-रसा रहे लब पर हो शिकवा-रेज़ तबस्सुम बुझा हुआ दिल में मगर किसी की मोहब्बत सिवा रहे तस्वीर की तरह तिरी सूरत हो रू-ब-रू तस्वीर बन के कोई तुझे देखता रहे दिल तंग हो तो वुसअत-ए-आलम भी तंग-तर दुनिया बहुत खुली है अगर दिल में जा रहे लगते ही आँख रात के हंगामे सो गए जागे थे जितनी देर क़यामत बपा रहे फूलों ने जा के सेज सजाई तमाम रात काँटे चमन के सब मिरे दामन में आ रहे ये जश्न-ए-ना-ख़ुदा है कि मौजों का रक़्स है कश्ती हो ग़र्क़-ए-आब मगर ना-ख़ुदा रहे कहने को एक लफ़्ज़ मिरे पास है 'जमील' जब ले उड़े वो बात मिरे पास क्या रहे