गुलशन-गुलशन ज़िक्र है उन का महफ़िल-महफ़िल चर्चा है जब से शहर में आए हैं वो हंगामा सा बरपा है आँखें जैसे गुल नर्गिस के चाल ग़ज़ालों जैसी है चेहरा देख के सोचा सब ने चाँद ज़मीं पर उतरा है फीकी है मुस्कान कली की उन के तबस्सुम के आगे कोमल कोमल से गालों का रंग शफ़क़ से गहरा है सब से सुंदर लगती है वो जो नादीदा सूरत है हर इक आँख टिकी है उस पर जिस चेहरे पर पर्दा है भोली-भाली सब से न्यारी सूरतिया वो प्यारी प्यारी आँखें तक-तक थक जाती हैं लेकिन दिल कब भरता है उस ने ही सब दर्द दिए जो ढल-ढल कर हैं गीत बने इक-इक शे'र 'सदा' है उस का इक-इक नग़्मा उस का है