गुल्सिताँ मैं ने बनाया जो है वीराने को किस की ताक़त है उजाड़े मिरे काशाने को और होंगे तिरे मोहताज-ए-करम ऐ साक़ी मैं बहारों को तरसता हूँ न पैमाने को धज्जियाँ दामन-ए-हस्ती की न उड़ जाएँ कहीं इतना बहकाओ न बहके हुए दीवाने को मेरी रोती हुई आँखों को न देखो पैहम और छलकाओ न छलके हुए पैमाने को आज तक वो भी बचाते रहे दामन अपना कितना हुशियार समझते हैं वो दीवाने को सारी दुनिया तो 'असर' देख चुकी हाल-ए-तबाह इक ख़ुदा रह गया हालत पे तरस खाने को