गुम कर ले अपने जलवों में तू सर-बसर मुझे मेरी ख़बर तुझे न हो तेरी ख़बर मुझे मर्ज़ी है उस की ख़ार हों फूलों के साथ साथ उल्फ़त के साथ दे दिया दर्द-ए-जिगर मुझे इक लज़्ज़त-ए-विसाल से दिल को सुकूँ कहाँ कुछ इस से भी बुलंद अता हो नज़र मुझे किस बूते पे मैं क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ माँगता पहले बना न देते जो एक मुश्त पर मुझे जब भी तुझे न ख़्वाब में मैं देख लूँ 'रफ़ीक़' तारीक मेहर-ओ-माह भी आते नज़र मुझे