गुरेज़ाँ रंग-ओ-बू से दिल नहीं है अभी शायद जुनूँ कामिल नहीं है निगाहें अपने मरकज़ पर हैं लेकिन जहाँ दिल था वहाँ अब दिल नहीं है सरिश्क ग़म में नग़्मे हो चुके ज़म मगर ख़ामोश साज़-ए-दिल नहीं है अभी बाक़ी है इम्कान-ए-तलातुम अभी कश्ती लब-ए-साहिल नहीं है फिर उस से अर्ज़-ए-ग़म 'मुख़्तार' क्या हो जो मेरे हाल से ग़ाफ़िल नहीं है