कुछ न थी बेगम मुए इंसान की बुनियाद भी इस जनम में हो रही है उस जन्म की याद भी देन से अल्लाह की दौलत भी है औलाद भी अब उन्हें क्या चाहिए बहुएँ भी हैं दामाद भी सास ननदों से अदावत उन से उल्फ़त है मुझे शाद भी ससुराल में हूँ और मैं नाशाद भी जेठ का मुँह देखती हूँ करती हूँ बेटी का पास ये भतीजा भी है मेरा बीबियो दामाद भी क्यों न कोसों दूर भागूँ तेरी सोहबत से मुए खाज में भी तो लदा है हो गया है दाद भी सौत के आगे है बकरी और मेरे हक़ में शेर नर्म-दिल भी लोग कहते हैं उसे जल्लाद भी लाल पीले मुझ पे मत हो तुम बटाओ अपना ख़ून जोंक वाली भी यहीं मौजूद है फ़स्साद भी हाए कैसा हो गया है ख़ून दुनिया का सफ़ेद जोंक वाली भी ना आई मर गया फ़स्साद भी आज साबित हो गया 'शैदा' तुम्हारी रेख़्ती इक पुरानी चीज़ भी है इक नई ईजाद भी