हाल-ए-दिल जिन से कहने की थी आरज़ू वो मिले तो हमीं से लगे हू-बहू जिस्म के बन के भीतर ही था वो कहीं जिस को ढूँडा किए दर-ब-दर कू-ब-कू कर के इक बात ही रूह में आ बसा कितनी दिलकश थी उस शख़्स की गुफ़्तुगू फूल यादों के जो सहन-ए-दिल में खिले एक ख़ुशबू सी बिखरा गए चार-सू सुर्ख़ चेहरों में 'साग़र' न ढूँढो मुझे मेरी ग़ज़लों में है मेरे दिल का लहू