हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है सहर वालों को ज़िक्र-ए-शाम से तकलीफ़ होती है वही काफ़िर कि जिस का नाम तस्कीन-दिल-ओ-जाँ था सितम है अब उसी के नाम से तकलीफ़ होती है मक़ाम ऐसा भी आता है गुज़रगाह-ए-मोहब्बत में मुसाफ़िर को जहाँ आराम से तकलीफ़ होती है शिकस्त-ए-दिल की मंज़िल से अगर गुज़रे तो क्या होगा अभी तुम को शिकस्त-ए-जाम से तकलीफ़ होती है 'हफ़ीज़' अहल-ए-गुलिस्ताँ से हमारा हाल मत कहना उन्हें ज़िक्र-ए-असीर-ए-दाम से तकलीफ़ होती है