इश्क़ में हर नफ़स इबादत है मज़हब-ए-इश्क़ आदमियत है इक ज़माना रक़ीब है मेरा जब से हासिल तिरी रिफ़ाक़त है ज़िंदगी नाम रंज-ओ-ग़म ही सही फिर भी किस दर्जा ख़ूबसूरत है इक मोहब्बत भरी नज़र के सिवा और क्या अहल-ए-दिल की क़ीमत है चंद मुख़्लिस जहाँ इकट्ठा हूँ वो जगह अहल-ए-दिल की जन्नत है कौन सुलझाए गेसु-ए-दौरान अपनी उलझन से किस को फ़ुर्सत है एक दुनिया तबाह कर डाले एक ज़र्रा में ऐसी ताक़त है सितम-दोस्त हो कि लुत्फ़ दोस्त जो भी मिल जाए वो ग़नीमत है उन को देखेंगे बे-हिजाब 'हफ़ीज़' शौक़-ए-दीदार अगर सलामत है