ये पैकर-ए-जमाल तो इ'ताब के लिए नहीं मिरे ख़ुदा ये आदमी अज़ाब के लिए नहीं तुझे है शौक़-ए-बंदगी बहिश्त के ख़याल से मगर मिरी इबादतें सवाब के लिए नहीं ये मुझ से एहतिराज़ क्यूँ ये मुझ से इज्तिनाब क्यूँ सवाल तुझ से है मगर जवाब के लिए नहीं जनाब क्यूँ उदास हैं जनाब क्यूँ मलूल हैं ये ग़म तो हैं मिरे लिए जनाब के लिए नहीं जिसे पसंद आएगा वो तोड़ लेगा शाख़ से अमान अपने बाग़ में गुलाब के लिए नहीं जो ग़म उठा चुका है तो उन्हें न अब शुमार कर ये मुख़्तसर सी ज़िंदगी हिसाब के लिए नहीं ज़मीं पे 'शाहिद'-ए-हज़ीं हक़ीक़तें तलाश कर ये दश्त-ए-ज़िंदगी किसी सराब के लिए नहीं