है ग़म की धूप कड़ी थोड़ी दूर साथ चलो कि दो क़दम ही सही थोड़ी दूर साथ चलो कभी न ख़त्म हों कहता है कौन ये दूरी कठिन सफ़र ही सही थोड़ी दूर साथ चलो चलो कि दामन-ए-दिल में समेट लें यादें निगाह धुँदली सही थोड़ी दूर साथ चलो रिवायतों के अँधेरों में भटकें कब तक हम दिशाएँ ढूँडें नई थोड़ी दूर साथ चलो चलो 'शफ़ीक़' के सज्दा ही कर लें नज़रों का फिर आँखें नम ही सही थोड़ी दूर साथ चलो