हर गुमाँ पर यक़ीं न हो जाए आसमाँ बे-ज़मीं न हो जाए क़त्ल मेरा करो मगर रुस्वा आप की आस्तीं न हो जाए उस पे अशआ'र कहना कम कर दो वो ज़ियादा हसीं न हो जाए दर्द को पालते रहो जब तक दिलबरो दिल-कशी न हो जाए तेरे इज़हार-ए-हक़ से देख 'शफ़ीक़' हर कोई नुक्ता-चीं न हो जाए