इसी लिए हैं यहाँ वसवसे बहुत सारे मिरी ज़बान पे हैं ज़ाइक़े बहुत सारे बस इक सनम था मगर मसअले बहुत सारे गुज़िश्ता दौर में थे वलवले बहुत सारे हयात कहने लगी कुछ नहीं रहा बाक़ी मगर क़ज़ा ने दिए ज़ाविए बहुत सारे मैं बन गया था कोई जो मैं कभी था ही नहीं नई क़बा ने दिए हौसले बहुत सारे क़बा पहन के मिरे जिस्म की कोई मेरा रफ़ीक़ लेने लगा फ़ैसले बहुत सारे