है मसीहा-ए-अजल को तिरे बीमार से नाज़ किस को दुनिया में नहीं अपने तलबगार से नाज़ नाज़-बरादारी-ए-रंजूर-ए-अबद मुश्किल है उठ सकेंगे मिरे कब तक किसी ग़म-ख़्वार से नाज़ बन गया यार की तस्वीर हर इक नक़्श-ए-क़दम क्या टपकता है परी-वश तिरी रफ़्तार से नाज़ क्यों न उश्शाक़ को फिर लुत्फ़-ओ-करम हो यकसाँ नाज़ से प्यार है ख़ुश-तर तिरा और प्यार से नाज़ लन-तरानी की सदा कोह पर अब तक है बुलंद इन बुतों को है नहीं तालिब-ए-दीदार से नाज़ अब तिरे नाज़-ए-बजा को भी वो समझा बेजा ख़त नुमायाँ है मुनासिब नहीं अग़्यार से नाज़ क्यों न जी बेच के ख़्वाहान 'शहीदी' हों हज़ार उन का एक एक है अनमोल ख़रीदार से नाज़