हरीफ़ो होश में आओ कि जाम शीशे का किसी के लब को है लाया पयाम शीशे का दिलों को मस्त न लटकाती ज़ुल्फ़ शाने में किया है सीने में मैं ने मक़ाम शीशे का यही नमाज़-ए-जमाअत है रिंदों की ज़ाहिद कि झुकते हैं झुके जिस दम इमाम शीशे का तुझे सिफ़ाल मयस्सर न हो लगा दे ओक रवाँ हो मय-कदे में फ़ैज़-ए-आम शीशे का निकाल मुझ को न बज़्म-ए-शराब से बाहर कि तेरा बुरदा हूँ साक़ी ग़ुलाम शीशे का ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मुझे दे शराब पीर-ए-मुग़ाँ ज़बान-ए-हाल से ये है कलाम शीशे का हज़ार सई करे ज़ख़्म-ख़ुर्दा एक गज़ंद मुहाल दिल की तरह इल्तियाम शीशे का वही लताफ़त-ए-सूरत वही सफ़ा-ए-दरूँ हमारे दिल में है नक़्शा तमाम शीशे का न छुट सके तिरे क़ाबू में आ के ऐ बदमस्त लकीरें हैं कफ़-ए-नाज़ुक में दाम शीशे का बला-ए-जाँ थी मुझे चाल हे तिरी साक़ी क़यामत और भी लाया ख़िराम शीशे का